कोरोना माता का मंदिर ढहाए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को सुनावई किया। साथ ही याचिका को खारिज दायर करने वालों पर 5,000 रुपए का हर्जाना भी लगाया। बता दें कि मामला उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से जुड़ा है। जहां स्थानीय लोगों से चंदा इकठ्ठा कर विवादित जमीन पर मंदिर बनवाया गया था।
याचिका खारिज कर क्या बोले जज
सुनवाई के दौरान जजों ने कहा, ‘याचिका लगाने वालों ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। यही नहीं, उन्होंने जहां मंदिर बनवाया, वह जमीन भी विवादित थी। इस बाबत पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई गई है। इसलिए याचिकाकर्ताओं पर हर्जाना लगाते हुए यह याचिका खारिज की जाती है। यह पैसा चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड वेलफेयर फंड में जमा कराया जाए।’
दायर याचिका में दी गई थी यह दलील
बताते चलें कि प्रतापगढ़ के जूही शुकुलपुर में इस साल सात जून को कोरोना माता का मंदिर स्थानीय लोगों ने बनवाया था। इसे 11 जून को ढहा दिया गया। इसके खिलाफ दीपमाला श्रीवास्तव ने संविधान के अनुच्छेद-32 का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में उन्होंने इसे मूलभूत अधिकारों के हनन का मामला बताया था। जिसपर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। शीर्ष अदालत के जस्टिस एसके कौल और एमएम सुंदरेश ने शनिवार को यह याचिका खारिज की।
क्यों ढहा गया कोरोना माता का मंदिर
जुही शुकुलपुर के निवासी लोकेश कुमार श्रीवास्तव ने स्थानीय लोगों से चंदा जुटाकर कोरोना माता का मंदिर बनवाया था। इसमें कोरोना माता की प्रतिमा स्थापित की गई थी। एक पुजारी की नियुक्ति कर पूजा भी शुरू कर दी गई। इसके बाद लोकेश नोएडा चले गए। इसी बीच जमीन के संयुक्त मालिक नागेश कुमार श्रीवास्तव ने पुलिस में शिकायत कर दी। इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि लोकेश ने जमीन कब्जाने के लिए यह मंदिर बनवाया है। इसके बाद पुलिस ने मंदिर ढहा दिया था।