Published on October 14, 2021 12:58 pm by MaiBihar Media
शास्त्रों में कहा गया है कि अगर पूरे नवरात्र में उपवास न कर सके तो 3 दिन उपवास करने पर भी मनुष्य यथोक्त फल का अधिकारी हो जाता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी इन तीन रातों में उपवास करके देवी की पूजा करने से सभी फल प्राप्त हो जाते हैं। देवी पूजन, हवन, कुमारी पूजन एवं ब्राह्मण भोजन इन चार कार्यों के संपन्न होने से सांगोपांग नवरात्र व्रत पूरा होता है।
सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर पूजा जाता है। कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें आदर-सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है। ऐसा करने वाले भक्तों को माता सुख-समृद्धि का वरदान देती है। पुराणों में उल्लेख है कि नवरात्र में कुंवारी कन्याओं का पूजन विधि-विधान से करना चाहिए। कुमारी वही लड़कियां कहलाती है, जो कम से कम 2 वर्ष की हो चुकी हो। 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति और 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी कहते हैं।
वहीं, 05 वर्ष वाली को रोहिणी, 06 वर्ष वाली को कालिका, 07 वर्ष वाली को चंडीका, 8 वर्ष वाली को शांभवी, 9 वर्ष वाली को दुर्गा और 10 वर्ष वाली को सुभद्रा कहा गया है। शास्त्रों में इसके ऊपर अवस्था वाली कन्याओं का पूजन निषेध माना गया है। बता दें कि इस दौरान नौ कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व होता है।
क्या है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि एक बार माता वैष्णो देवी ने अपने परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी न सिर्फ लाज बचाई और पूरी सृष्टि को अपने अस्तित्व का प्रमाण भी दे दिया। आज जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे से दो किमी की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में माता के भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि: संतान थे एवं दुखी थे। एक दिन उन्होंने नवरात्र पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को अपने घर बुलवाया। माता वैष्णो कन्या के रूप में उन्ही के बीच आकर बैठ गई। पूजन के बाद सभी कन्याएं लौंट गई, लेकिन माता नहीं गई। बालरूप में आई देवी पं. श्रीधर से बोलीं सबको भंडारे का निमंत्रण दे आओ। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आसपास के गांवों में भंडारे का संदेशा भिजवा दिया। भंडारे में तमाम लोग आए। कई कन्या कई कन्याएं भी आई। इसी के बाद श्रीधर के घर संतान की उत्पत्ति हुई। तब से आज तक कन्या पूजन और कन्या भोजन करा कर लोग माता से आशीर्वाद मांगते हैं।