Published on August 3, 2021 2:27 pm by MaiBihar Media

ओलंपिक में मेडल प्राप्त करने वालों पर सरकार का विशेष ध्यान और बिहार, यूपी जैसे राज्यों में खेलों की स्थिति को लेकर पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार की टिप्पणी- “कई राज्यों ने एक तरीक़ा खोज लिया है। इनामी तरीक़ा। जो ओलंपिक में पदक जीत कर लाएगा उसे दो करोड़ मिलेगा। हर साल इसकी बोली लगती है और इसकी राशि बढ़ कर छह करोड़ तक जा पहुँची है। खेल और खिलाड़ियों के लिए इतना कम किया जाता है कि ये राशि भी कम ही लगती है। लेकिन एक विजयी के पीछे छह करोड़ देने वाली सरकार किसी ज़िले पर खेल पर दो करोड़ भी खर्च नहीं करती होगी। इनामी राशि से वह ख़ुद को इस अपराध बोध को हल्का करती है न कि खेल की मदद करती है। इनामी राशि की यह होड़ तब अच्छी मानी जाती जब इसी के साथ खेल में भी निवेश होता।

ओड़िशा ने जो किया है उससे कई राज्य सबक़ ले सकते हैं। ख़ास कर बिहार और यूपी। जिन राज्यों ने बढ़त बनाई थी वे अब पिछड़ते जा रहे हैं। पंजाब और हरियाणा का नाम लिया जा सकता है। केंद्र सरकार का खेल का बजट तीन हज़ार करोड़ भी नहीं है।
लेकिन ओलंपिक में खिलाड़ियों का हौसला बनाने के नाम पर अपने नाम का माहौल बनाया जा रहा है। हॉकी राष्ट्रीय खेल है लेकिन इसका प्रायोजक एक राज्य है। क़ायदे से यह काम उस सरकार को करना चाहिए था जिसने खेलो इंडिया शुरू किया था। पता नहीं खेलो इंडिया नाम का अभियान इन दिनों कहां और कैसे खेल रहा है। ओलंपिक आते ही नया अभियान शुरू कर दिया गया ताकि पुराने की चर्चा न हो। वर्ना खेलो इंडिया क्या बुरा था। इस पर चर्चा होने का मतलब था खेलो इंडिया की हक़ीक़त लोग बताने लगते। इसलिए चीयर फ़ॉर इंडिया का नारा दिया गया। ताकि उसका शोर हो जाए।

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शोर के इस दौर में नवीन पटनायक ने एक काम चुपके से किया। हॉकी में निवेश किया। इसका नतीजा हार और जीत से तय नहीं हो सकता। खेल में निवेश उसके आगे का सोच कर किया जाता है।”

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