Published on August 24, 2021 4:12 pm by MaiBihar Media

यूपी और असम में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाया जाना नागरिकों के लिए सज़ा है या ध्रुवीकरण या सिर्फ ध्यान भटकाने के लिए मुद्दा? एक समय था जब जनसंख्या नियंत्रण को लेकर चीन द्वारा अपनाई गई वन चाइल्ड पॉलिसी आज वहां के लिए समस्या बन कर उभरा है। ऐसे में देश के वरिष्ठ पत्रकारों व जानकार तबकों का नियंत्रण पर अलग-अलग राय है। आइये, जानते हैं जनसंख्या नियंत्रण पर क्या सोचते हैं देश के प्रबुद्ध लोग-

प्रोफेसर शरदेंदु कुमार (पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष, पीयू) का कहना है कि-जनसंख्या वृद्धि और नियंत्रण एकल समस्या नहीं है। अशिक्षा-दरिद्रता, भविष्य को लेकर असुरक्षा-अनिश्चितता, धार्मिक अंधविश्वास-जड़ता ,बहुत सारे कारण हैं इसके पीछे।यह किसी भी देश के लिए अभिशाप भी है और वरदान भी। यह निर्भर करता है सरकार के दृष्टिकोण पर। राजनीतिक पूर्वाग्रह और कुटिलता के कारण यह समस्या और जटिल हो जाती है, समस्या की गंभीरता ही नष्ट हो जाती है। फिलहाल ऐसा ही होनेवाला है। साम्प्रदायिक नज़रिए से इस समस्या को देखनेवाले लोग इसे राजनैतिक झुनझुना बनाकर छोड़ देंगे। चुनाव के बाद इस पर कभी चर्चा भी नहीं होगी।

वहीं, इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल का कहना है कि यूपी के प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून के प्रारूप को आपने ठीक से देखा-समझा? मुझे तो लगता है, ऐसे लचर, अंतर्विरोधी और अतार्किक प्रावधानों वाले कानून को दुनिया के किसी भी लोकतांत्रिक देश की न्यायपालिका फौरन ख़ारिज कर देगी। जनसंख्या नियंत्रण का सारा दारोमदार स्थानीय चुनावों के संभावित प्रत्याशियों या कुछ सरकारी कर्मियों पर ही क्यों रहे? ऐसे नियम के दायरे में संसद, विधानमंडल, मंत्रिमंडल, न्यायपालिका के माननीय सदस्य, राजनीतिक दलों के नेता, शीर्ष नौकरशाही के सदस्य, पत्रकार, कारपोरेट, जमीदार और उपासना स्थलों के पुजारी/मौलवी आदि भी क्यों न लाये जायें!
मतलब ये कि इस कानून का ढोल सिर्फ असल मुद्दों(कोरोना से निपटने, लोगों को मुआवजा देने और टीकाकरण की विफलता, भयानक बेरोजगारी, दमन और उत्पीड़न आदि) से लोगों का ध्यान हटाने के लिए पीटा जा रहा है। सबको मालूम है, यह लागू होने वाला नहीं है।

महिला और गरीब आएंगे इसके जद में

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार का कहना है कि आबादी के नियंत्रण का क़ानून ग़रीब तबकों पर कोड़े की मार का काम करेगा। सभी को पता है कि ग़रीबी और अशिक्षा के कारण ही आबादी बढ़ती है। ऐसे परिवारों के लोगों के बच्चों के लिए ख़ुद को सँभालने में काफ़ी वक़्त लग जाता है। इसलिए भर्ती परीक्षाओं में उम्र सीमा में छूट दी जाती है। अब अगर आबादी नियंत्रण के नाम पर बंदिश लगेगी तो बहुत सारे नौजवान नौकरी से वंचित हो जाएँगे। एक समस्या और है। अभी तक इस क़ानून को पुरुषों को सामने रख देखा जा रहा है लेकिन महिलाओं की नज़र से देखेंगे तो पता चलेगा कि यह क़ानून उनके सपनों को कमज़ोर करता है। ज़रूरी है कि सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करे और रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर पैदा करे। आबादी अवसरों में रुकावट पैदा नहीं करती है। आप प्रधानमंत्री का ही बीसियों भाषण सुन सकते हैं जिसमें वे भारत की सवा सौ करोड़ की आबादी को संभावना बताते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार बताते हैं।

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किसको होगा ज्यादा फायदा व किसे पड़ेगा फर्क?

प्रोफेसर और वरिष्ठ पत्रकार दिलीप सी मंडल का कहना है कि आप मुझसे शर्त लगा सकते हैं। बीजेपी जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं लाएगी।हिंदू बागी हो जाएंगे। ये कानून चर्चा में सिर्फ इसलिए है क्योंकि सरकार को लगता है कि टीवी पर बैठकर मौलाना लोग विरोध करेंगे और चुनाव से पहले यूपी में ध्रुवीकरण हो जाएगा। जबकि इसका तीन गुना ज्यादा असर हिंदुओं पर होना है। इतना ही नहीं प्रो. दिलीप सी मंडल ने सवाल उठाते हुए पूछा है कि भारत सरकार का सर्वे देखा जाय तो जनसंख्या नियंत्रण कानून से 2 से ज्यादा बच्चे वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना बंद होगा तो उनमें 71% तो OBC, SC, ST के हिंदू होंगे। मुसलमानों के नाम पर BJP, SC-OBC-ST के गरीबों का काटेगी, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। और वो पैसा बचाकर सेठों तक पहुंचा देगी। मुसलमानों को वैसे भी सरकारी योजनाओं का कितना लाभ मिल रहा है? जी लेगा।

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आपको बता दें कि हाल में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने पर असम और यूपी राज्य कार्य कर रहे हैं। जबकि केंद्र सरकार द्वारा 2019 में जनसंख्या नियंत्रण पर विधेयक लाया जा चुका है। इसके बाद वर्ष 2020 में जब सुप्रीम कोर्ट में दो बच्चों की नीति से जुड़ी एक पीआईएल पर सुनवाई हुई तो केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर किया था कि भारत में परिवार नियोजन के लिए किसी भी जोर जबरदस्ती की जरूरत नहीं है। भारत में यह अधिकार का मुद्दा है और परिवार नियोजन के लिए एक राइट बेस्ड अप्रोच ही बेहतर है।

फेसबुक पेज से साभार

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