Published on December 20, 2021 11:43 pm by MaiBihar Media
लोक सभा में सोमवार को चुनाव अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2021 यानी कि पेश किया गया, सदन में इसकी मंजूरी भी मिल गई। इस बिल में वोटर कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने का प्रावधान किया गया है। केन्द्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने आज यानी सोमवार को सदन में विधेयक को पेश किया। विपक्ष के हंगामे के बीच सोमवार को चुनाव सुधार विधेयक लोकसभा से पास हो गया। विधेयक पेश होते ही विपक्ष ने पुत्तुस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आधार बनाकर विरोध किया। बता दें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को चुनाव सुधारों से जुड़े इस विधेयक के मसौदे को अपनी मंजूरी दी थी। जिसके बाद सदन में इसे पेश किया गया और लोकसभा से इस बिल को सोमवार के दिन यानी 20 दिसंबर मंजूरी भी मिल गई।
अब वोटर आईडी कार्ड भी बनाना होगा आसान, साल में चार बार खुलेगा विंडो
वहीं, केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने बिल पास होने के बाद कहा, आधार कार्ड को वोटर लिस्ट से जोड़ना अनिवार्य नहीं। यह स्वैच्छिक और ये वैकल्पिक है। इससे पता जानने में मदद होगी, फर्जी वोटिंग रोकने में मदद होगी। मौजूदा प्रणाली में अगर 2 जनवरी तक आपका नाम सूची में नहीं आया तो आपको 1 साल इंतजार करना पड़ता था। अब इसके लिए साल में 4 बार विंडो खुलेगी।
ओवैसी ने जताया विरोध कोर्ट के फैसले को बनाय आधार
असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए बिल को निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा, पुट्टुस्वामी मामले में निजता की जो परिभाषा दी गई है, बिल उसका उल्लंघन करता है। ओवैसी ने आशंका जताई कि वोटर आईडी को आधार कार्ड से जोड़ने से सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी ‘गुप्त मतदान’ की प्रक्रिया में छेड़छाड़ कर सकेगी। उन्होंने बिल पर मतविभाजन की मांग की। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह ऐसा बिल है जिससे पूरा लोकतंत्र खत्म हो गया है। इस बिल पर चर्चा की जरूरत है।
कांग्रेस ने भी जताई आपत्ति
वहीं, विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह पुत्तुस्वामी बनाम भारत सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ है कांग्रेस नेता ने कहा, ‘हमारे यहां डाटा सुरक्षा कानून नहीं है और अतीत में डाटा के दुपयोग किये जाने के मामले भी सामने आए हैं।’ चौधरी ने कहा कि ऐसे में इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए और इसे विचारार्थ संसद की स्थायी समिति को भेजा जाना चाहिए। वहीं, कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि आधार को केवल आवास के प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं। ऐसे में इसे मतदाता सूची से जोड़ना गलत है। हम इसका विरोध करते हैं।
विधि मंत्री ने विपक्ष को समर्थन देने का किया आग्रह
विपक्षी सदस्यों की आशंकाओं को निराधार बताते हुए रिजिजू ने कहा कि सदस्यों ने इसका विरोध करने को लेकर जो तर्क दिये हैं, वे उच्चतम न्यायालय के फैसले को गलत तरीके से पेश करने का प्रयास है। यह शीर्ष अदालत के फैसले के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि सरकार ने जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन का प्रस्ताव इसलिये किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई व्यक्ति एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकरण न करा सके तथा फर्जी तरीके से मतदान को रोका जा सके। विपक्ष को इस विधेयक पर सरकार का साथ देना चाहिए।
क्या है पुत्तुस्वामी का फैसला
पुत्तुस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजता यानी प्राइवेसी को मूल अधिकार बताया है। कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस रह चुके केएस पुत्तुस्वामी ने 24 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्र सरकार की आधार स्कीम का विरोध किया। उन्होंने इसे अनुच्छेद 21 में मिले अधिकारों का उल्लंघन करार दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2018 में ऐतिहासिक फैसला दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मूलभूत अधिकार बताते हुए आधार कार्ड को बैंक और मोबाइल फोन से लिंक कराने की अनिवार्यता खत्म कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने साथ में यह भी कहा कि आधार कार्ड को सीबीएसई, एनईईटी, यूजीसी और स्कूलों में एडमिशन के लिए जरूरी नहीं किया जा सकता है। हालांकि, पैन और आईटी रिटर्न फाइल करने के लिए आधार की अनिवार्यता बनी रहेगी। कोर्ट ने सरकार को लोगों की प्राइवेसी की रक्षा के लिए मजबूत डेटा प्रोटेक्शन कानून लाने का भी आदेश दिया था। जिसका हवाला आज विपक्ष दे रहा है।
क्या है नए कानून में
सैन्य मतदाताओं के लिए चुनाव संबंधी कानून को लैंगिक निरपेक्ष बनाया जाएगा। फिलहाल किसी भी सैन्यकर्मी की पत्नी को सैन्य मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने की पात्रता है। हालांकि महिला सैन्यकर्मी का पति को पंजीकरण कराने की पात्रता नहीं है। विधि मंत्रालय से निर्वाचन आयोग ने सैन्य मतदाताओं से संबंधित प्रावधानों में ‘पत्नी’ शब्द को बदलकर ‘स्पाउस’ (जीवनसाथी) करने को कहा था। कट ऑफ तिथि युवाओं को मतदाता के रूप में प्रत्येक वर्ष चार तिथियों के हिसाब से पंजीकरण कराने की अनुमति देने की बात एक अन्य प्रावधान में कही गई है।
फिलहाल मतदाता के रूप में एक जनवरी या उससे पहले 18 वर्ष के होने वालों को ही पंजीकरण कराने की अनुमति दी जाती है। आयोग ने केंद्र सरकार से कहा था कि एक जनवरी की ‘कट ऑफ तिथि’ के कारण अनेक युवाओं का नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं हो पाता। आयोग का तर्क था कि युवाओं को पंजीकरण कराने के लिए अगले वर्ष का इंतजार करना पड़ता था। संशोधन में मतदाता पंजीकरण के लिए हर वर्ष चार ‘कट ऑफ तिथियों’-एक जनवरी, एक अप्रैल, एक जुलाई तथा एक अक्टूबर- रखने का प्रस्ताव है।