एक सदी से ज्यादा समय से चल रहे मलेरिया की वैक्सीन का विकसित करने कार्यों में बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। घाना, केन्या और मलावी में शुरुआती जांच में सफलता के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने मलेरिया के पहले टीके को मंजूरी दे दी है। जिससे दुनिया को पहली मलेरिया वैक्सीन आरटीएस, एस/एएस01 मिल गई है। बताते चले कि पूरी दुनिया में हर साल लाखों लोग खासकर बच्चे इसकी चपेट में आते हैं। भारत में ही हर साल तीन लाख से ज्यादा लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं। ऐसे में भारत के लिए बड़ी राहत की खबर है।

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क्या बोला डब्लूएचओ(WHO)- मंजूरी देने के साथ ही डब्लूएचओ ने कहा कि अफ्रीकी और अन्य मलेरिया ग्रस्त इलाकों से टीकाकरण की शुरुआत होगी। डब्लूएचओ के प्रमुख टेड्रोस एडहोनम गेब्रियेसस ने कहा, यह ऐतिहासिक क्षण है। बच्चों के लिए बहुप्रतीक्षित मलेरिया वैक्सीन अहम खोज है। यह बच्चों की सेहत और मलेरिया नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण है। इससे हर साल लाखों बच्चों की जान बचेगी। डब्लूएचओ ने अफ्रीकी देशों के दो साल की उम्र तक के बच्चों को वैक्सीन के चार डोज देने की सिफारिश की है।

कैसे फैलता है मलेरिया

मलेरिया एक परजीवी (पैरासाइट) है जो ब्लड सेल्स पर हमला करके उसे नष्ट करता है। इसके बाद मलेरिया पीड़ितों को काटने वाले मच्छर दूसरों में मलेरिया फैलाते हैं। इन परजीवियों को दवाओं से मारा जाता है। परिजीवी 100 से भी ज्यादा तरीके के हैं। यह वैक्सीन सबसे घातक प्लाज्मोडियम फैल्सीपेरम पर भी असरकारी है। इसके रोकथाम में अब दुनिया को पहली मलेरिया वैक्सीन मिल गई है। इस वैक्सीन का नाम आरटीएस, एस/एएस01 है।

कब और कहां किया गया इस वैक्सीन का ट्रायल

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आपको बता दें कि घाना, केन्या और मालावी में पायलट प्रोग्राम के तहत 20 लाख से बच्चों को यह वैक्सीन दी गई। वैक्सीन देने के बाद नतीजे बताते हैं कि मलेरिया की वैक्सीन सुरक्षित है और इससे 30 फीसदी गंभीर मामले रोके जा सकते हैं। छह साल पहले हुए एक ट्रायल से पता चला कि वैक्सीन मलेरिया पीड़ित 10 में से चार लोगों को बचाने में कामयाब रही। इस वैक्सीन से दूसरे टीकों या मलेरिया रोकने के दूसरे उपायों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

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