Published on May 28, 2022 12:44 pm by MaiBihar Media

हिन्दी लेखिका गीतांजलि श्री (Geetanjali Shree) को अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार (International Booker Prize) से सम्मानित किया गया है। यह इतिहास में पहली बार है जब किसी हिन्दी राइटर को यह सम्मान दिया गया है। उनके उपन्यास ‘टॉम्ब ऑफ़ सैंड’ के लिए पुरस्कार दिया गया है। यह हिन्दी भाषा का पहला नॉवेल है जिसे यह सम्मान दिया गया है। गीतांजलि श्री उत्तरप्रदेश के मैनपुरी जिले की रहने वाली हैं। गीतांजली का हिन्दी उपन्यास ‘रेत समाधी’ के नाम से प्रकाशित हुआ था। उनके इस उपन्यास को डेजी रॉकवेल ने अग्रेजी में ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ के नाम से ट्रांसलेट किया था।

तो इसलिए रेत समाधि की लेखिका गीताजंली को मिला बुकर पुरस्कार
रेत समाधि हिंदी का अब ऐसा उपन्यास बन गया है, जो युवा लेखकों में जान फुंकेगा। यह किताब 739 पन्नों का है। इस उपन्यास में 80 साल की एक अम्मा के बारे में है। जिनका नाम चंद्रप्रभा है। इनकी कहानी दिल्ली की गलियों से शुरू होती है और कई पड़ाव पार करते हुए पाकिस्तान पहुंचती है। चंद्रप्रभा की कहानी में एक महिला के हालात, पित्रसत्ता, टांसजेंडर, बंटवारा और राजनीति का बखूबी जिक्र किया गया है।

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चंद्रप्रभा की कहानी इन सभी मुद्दों से गुजरते हुए आगे बढ़ती है। कहानी की मुख्य किरदार यानी चंद्रप्रभा पति के देहांत के बाद खाट पकड़ लेती है। उपन्यास की कहानी में एक ट्रांसजेंडर की एंट्री से कई बड़े बदलाव आते हैं, यही से कहानी और दिलचस्प हो जाती है।

गीतांजलि श्री का यह उपन्यास बंटवारे का दर्द भी बखूबी बयां करता है। बंटवारे से पहले पाकिस्तान में रहने वाली चंदा का निकाह वहां के अनवर के साथ होता है और बंटवारे के बाद उसे हिन्दुस्तान आना पड़ता है। इस तरह पाकिस्तान की चंदा हिन्दुस्तान आकर चंद्रप्रभा बन जाती है।

गीतांजलि श्री को रेत की समाधि के लिए मिला बुकर प्राइज

बुकर पुरस्कार का पूरा नाम मैन बुकर अवार्ड फॉर फिक्शन है। इसकी स्थापना 1969 में इंगलैंड की बुकर मैकोनल कंपनी ने की थी। इसमें विजेता को 60 हजार पाउंड की रकम दी जाती है। ब्रिटेन या आयरलैंड में प्रकाशित या अंग्रेजी में ट्रांसलेट की गई किसी एक किताब को हर साल ये खिताब दिया जाता है। पहला बुकर पुरस्कार अलबानिया के उपन्यासकार इस्माइल कादरे को दिया गया था।

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