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धान की फसल बेहतर होने व गुणवत्तापूर्ण बालियों के निकलने से किसान काफी खुश दिख रहे थे। लेकिन, कुछ इलाकों में खैरा और हल्दिया रोग लगने से अन्नदाता काफी चिंतित नजर आ रहे है। इसी बीच 15 दिन पहले हुई भारी बारिश ने कई किसानों की परेशानियों को बल दे दिया है। किसानों ने बताया कि बारिश की वजह से सब्जी की फसल तो बर्बाद हुई तो अब धान की फसल भी बर्बादी के कगार पर हैं।

धान की फसल में खैरा रोग का दिख रहा है असर
धान की लेट वेराइटी किस्म जैसे सोना मंसूरी और अन्य वेराइटी की फसल में खैरा रोग का असर दिख रहा है। यह रोग ऐसे समय में दिख रहा है जब इनमें रेंड़ा बन गया है और कुछ ही दिनों में बालियां निकलने वाली है। जबकि आगत किस्म की धान की फसल में हल्दिया रोग दिखने लगा है। किसानों ने कहा कि हथिया नक्षत्र की बारिश का दुष्परिणाम दिखने को मिल रहा है।

किसानों ने कहा- पिछले साल भी लग गया था रोग
पिछले साल भी धान में बालियों में दाना बनने के दौरान बारिश होने से हल्दिया रोग लग गया था। इससे हमें काफी नुकसान हुआ था। एक माह पहले ही सितंबर महीने में आगत किस्म की फसल में खैरा रोग लग गया था। जिसपर बड़ी मुश्किल से किसानों ने पाया था काबू।

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जिंक का करें इस्तेमाल, खैरा रोग से मिलेगी मुक्ति
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खैरा रोग पर नियंत्रण के लिए किसान अपनी फसल में 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट व 20 किलोग्राम यूरिया या 2.5 किलो बुझे हुए चूने को 800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर खेत छिड़काव कर सकते हैं। हालांकि, अधिकतर किसान प्रति एकड़ 5 किलो जिंक सल्फेट का प्रयोग यूरिया खाद के साथ छींटकर कर रहे हैं। इसका फसल में फायदा भी दिख रहा है।

कीटों पर नियंत्रण कीटनाशक से ही है संभव
जानकारों ने बताया कि धान की फसल में पानी जमा होने व तापमान बढ़ने से इसमें कीटों का भी प्रकोप बढ़ जाता है। धान की फसल में हरा, भूरा व सफेद पीठ वाले फुदका और पत्ती लपेटक कीट ज्यादातर दिखते हैं। किसानों का कहना है कि ये पत्तियों को तो खाते ही हैं, बालियों को काटकर गिरा देते हैं। इससे किसान को नुकसान उठाना पड़ता है। इससे बचाव के लिए हाइड्रोक्लोराइड 4 जी दवा का इस्तेमाल करके नियंत्रण पाया जा सकता है।

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धान की फसल के लिए हानिकारक है हल्दिया रोग
फफूंदी जनित रोग हल्दिया भी धान फसल के लिए हानिकारक है। किसानों और कृषि के जानकारों का कहना है कि यह रोग खेत में अधिक नमी के चलते ही उत्पन्न होता है। फसल के पकने के समय में यह रोग लग जाता है। इससे बालियों में दाना पड़ते ही असर दिखाने लगता है। बाली का दाना पीले पाउडर में बदल जाता है। बाली के दाने का आवरण फटने से इसमें से पीला पाउडर सा बाहर निकलने लगता है

हल्दिया से बचाव के लिए कॉपर ऑक्सिक्लोराइड व स्टेप्टो साइक्लीन बेहतर उपाय
हल्दिया रोग से बचाव में कॉपर ऑक्सिक्लोराइड व स्टेप्टो साइक्लीन की अहम भूमिका होती है। इससे किसानों को काफी फायदा मिलता है। जाे बाली के दाने पिले पाउडर के रूप में बन जाते है उससे किसानों को राहत मिलेगी। दाना आने के बाद किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी।

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