Published on September 6, 2022 12:10 pm by MaiBihar Media
किसान अपने खेतों में यूरिया के साथ-साथ अन्य रसायनों का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे है। यह रसायन फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति करते है जो पौधों के विकास के लिये काफी कारगर है, लेकिन यह यूरिया जैव उर्वरक नहीं है। इससे जैविक खेती को कुछ विशेष लाभ नहीं मिल रहा । किसानों को अपने खेतों में जैविक उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए ढेंचा की खेती पर बल देने की जरूरत है। इसकी खेती रबी या खरीफ सीजन से पहले की जाती है, ताकि नकदी फसलों को कम लागत में बेहतरीन पोषण मिल सके। ढैंचा की खेती 15 अप्रैल के बाद शुरू कर दी जाती है। खेती के लिए एक हेक्टेयर में 15 से 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। अमूमन ढैंचा धान लगाने के लगभग दो माह पूर्व लगाया जाता है।
जानकारों के अनुसार इसकी फसल में फूल निकलने के बाद कटाई कर देनी चाहिए। इस समय तक ढैंचा की जड़ें काफी नाइट्रोजन सोख लेती हैं। फसल को काटने के बाद हरी खाद बनाने के लिए इसे पूरे खेत में अच्छे तरीके से फैला दें और हल्की सिंचाई भी कर दें। कुछ दिनों के बाद यह ढैचा आपके खेतों में जैविक खाद के रूप में तैयार हो जाएगा।
कब होती है ढैंचा की खेती
ढैंचा की खेती के लिए एक हेक्टेयर में 15 से 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। अमूमन ढैंचा धान लगाने के लगभग दो माह पूर्व लगाया जाता है। जून में हल्की बारिश होने के कारण इसके पटवन या विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है और यह खाली पड़ी जमीन के लिए उपयुक्त होता है। दरअसल ढैंचा कार्बनिक अम्ल पैदा करता है। जो लवणीय और क्षारीय भूमि को भी उपजाऊ बना देता है। ढैंचा की विकसित जड़े मिट्टी में वायु का संचार बढ़ाती हैं। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मजीव इसे खाद्य पदार्थ के तौर पर प्रयोग करते हैं। मिट्टी में अपघटन बढ़ने के कारण जैविक गुणों में वृद्धि होने के साथ ही फसलों को आसानी से पोषक तत्व प्राप्त होता है। इससे उत्पादन बढ़ता है।
एक एकड़ में 25 से 30 टन हरा खाद होता है तैयार
एक एकड़ में ढैंचा की फसल को लगभग 55 दिनों बाद खेतों में ही पलटाई व जुताई करने से औसतन 25 से 30 टन हरी खाद तैयार होती है। जिससे 80 से 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 12 से 15 किलोग्राम फास्फोरस,आठ से 10 किलोग्राम पोटाश की आपूर्ति होती है। इससे रसायनिक उर्वरक का औसत प्रयोग घट जाता है।