पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है। इस कड़ी में पितृपक्ष में नयागांव स्थित पहलेजा घाट धाम के दक्षिण वाहिनी गंगा नदी में पितरों की तर्पण के लिए लोगों की खुब भीड़ जुट रही है। यहां आसपास के इलाकों के अलावा दूसरे जिला से भी लोग पहुंचकर पिंडदान कर रहे हैं। बता दें कि पितृ तर्पण के लिए बिहार का बोध गया सबसे उत्तम स्थान माना गया है। चलिए विस्तार से जानते हैं क्या होता है पितृपक्ष और कौवें का क्यों है महत्व
क्या है पितृ तर्पण और कितने दिनों तक चलता है यह तर्पण- 16 दिन तक चलने वाले इस श्राद्ध पक्ष का समापन बुधवार 6 अक्टूबर को होगा। वहीं इन 16 दिनों तक शुभ कार्य वर्जित रहेंगे। माना जाता है कि पितृ पक्ष में पितर अपने लोक से धरती की यात्रा पर आते हैं, और अपने रिश्तेदारों को खुश देखकर प्रसन्न भी होते हैं। लेकिन इस समय यदि कोई अपने पितरों को याद नहीं करता या उनके लिए श्राद्ध आदि धार्मिक कार्य नहीं करता तो इससे पितर नाराज हो जाते हैं।
पितृ पक्ष या पितरपख वह अवधि (पक्ष/पख) है जिसमें हिन्दू धर्म मानने वाले अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिंडदान करते हैं। इसे ”सोलह श्राद्ध”, ”महालय पक्ष”, ”अपर पक्ष” आदि नामों से भी जाना जाता है। मनुष्य को उसी की पूजा करने के लिए कहा है जिसे पाना चाहता है। अतः अन्य पूजाएं (देवी-देवता और पितरों की) छोड़ कर सिर्फ परमात्मा की पूजा करें। पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है। धरती पर आने वाले पितृ तर्पण से प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। यदि पूर्वज प्रसन्न हैं, तो इसके संकेत भी पितृ पक्ष में मिलते हैं। इसमें कौवे की अहम भूमिका होती है।
कौवा का महत्व
कौवे को पितरों का प्रतीक मानकर श्राद्ध पक्ष के दिनों में भोजन कराया जाता है। कौवों को श्राद्ध पक्ष में भक्ति और विनम्रता से भोजन कराने की बात विष्णु पुराण में कही गई है। कौवे और पीपल को पितृ का प्रतीक माना जाता है। ऐसी ही कुछ मान्यताएं हैं, जिनसे पहचान सकते हैं कि पितृ पक्ष के दौरान कौवा घर की छत पर बैठकर शुभ या अशुभ संकेत दे रहा है। यदि कौवा ऊंट की पीठ पर बैठा मिले तो यात्रा कुशल होती है और यदि सूअर की पीठ पर बैठा दिखे, तो विपुल धन की प्राप्ति होती है। ठीक इसी तरह से श्राद्ध के दिनों में यदि घर की छत पर बैठे कौवे के चोंच में फूल-पत्ती हो तो मनोरथ की सिद्धि होती है। यदि कौवा गाय की पीठ पर बैठकर अपनी चोंच रगड़ता हुआ दिखे तो उसे उत्तम भोजन की प्राप्ति होती है। सूखा तिनका अपनी चोंच में लिए दिखे तो धन लाभ होता है।