Published on September 19, 2021 5:28 pm by MaiBihar Media

हिंदू पंचाग के अनुसार अंनत चतुर्दशी का व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। अनंत चतुर्दशी का त्योहार आज पूरे देशभर में मनाया जा रहा है। सुबह होते ही लोग स्नान कर पूजा में लग गए। श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना कर भगवान से सुख, शांति व समृद्धि की प्रार्थना की। इस शुभ मौके पर प्रतिक के रूप में दायें हाथों में धागे बांधे और को दक्षिणा प्रदान किया।

लॉकडाउन के बाद मंदिरों में धूमधाम से मना

अनंत भगवान की पूजा अर्चना की गयी। परंपरानुसार श्रद्धालुओं ने अनंत सूत्र बांध कर अनंत भगवान की पूजा अर्चना की और उसके बाद प्रसाद ग्रहण किया। इस दौरान लोगों में एक खास उत्साह देखा गया। क्योंकि कोरोना काल के बाद पहली बार मंदिर खुलने के कारण मंदिरों में सामूहिक पूजा का आयोजन किया गया। शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में भी आस्था एवं परंपरा पूर्वक धूमधाम से मनाया गया।

अनंत चतुर्दशी पर भगवान अनंत की पूजा-अर्चना भक्तिभाव से श्रद्धालुओं ने की। अपने परिवार के दीर्घायु एवं सुख समृद्धि की कामना को लेकर महिलाओं ने दिनभर उपवास रखा। इसके बाद भगवान अनंत की कथा सुनी। वहीं कई लोगों ने तो घरों में ही परंपरा व विधान के अनुसार पूजा अर्चना की। पूजा के बाद मिष्ठान भोजन किया।

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सर्वप्रथम पांडवों ने की थी अनंत चतुर्दशी

मान्यता के अनुसार अनंत चतुर्दशी का व्रत सर्वप्रथम पांडवों द्वारा रखा गया था। जिसके बारे में एक कथा मिलती है। मान्यता है कि जब द्रोपदी ने उपहास करते हुए दुर्योधन अंधे का पुत्र अंधा कहा था तो इसी बात का प्रतिशोध लेने के लिए उसने षडयंत्र रचा, और पांडवों को जुए में पराजित करके भरी सभा में द्रोपदी का अपमान किया। जिसके बाद पांडवों को बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष अज्ञात वास मिला। अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करते हुए पांडव अनेक कष्टों को सहते हुए वन में रहने लगे।

तब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से इस दुख को दूर करने का उपाय पूछा इस पर कृष्ण जी ने युधिष्ठिर से कहा कि जुआ खेलने के कारण लक्ष्मी तुमसे रुष्ट हो गई हैं। तुम अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु का व्रत रखो। इससे तुम्हारा राज-पाठ तुम्हें वापस मिल जाएगा। तब इस व्रत का महत्व बताते हुए श्रीकृष्ण जी ने उन्हें एक कथा सुनाई।  

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श्रीकृष्ण ने सुनाई थी यह कथा

भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत का महत्व बताते हुए कहा था कि ब्राह्मण कौंडिन्य ऋषि और उनकी पत्नी नदी के किनारे संध्या वंदन कर रहे थे।  इसी दौरान उनकी पत्नी सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही हैं  तो सुशीला ने उन महिलाओं से इस पूजा के बारे में पूछा तो उन्होंने भगवान अनंत की पूजा और उसके महत्व के बारे में बताया। सुशीला ने भी उसी समय व्रत का अनुष्ठान किया और 14 गांठों वाला सूत्र बांधकर कौंडिन्य के पास आ गई। कौंडिन्य ऋषि ने सुशीला से उस सूत्र के बारे में पूछा और सुशीला ने उन्हें सारी बात बताई। कौंडिन्य ने यह सब मानने से कर दिया और उस सूत्र को निकालकर अग्नि में फेंक दिया। जिसके बाद उनकी संपत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का कारण जब उन्होंने सुशीला से जानना चाहा तो उन्होंने अनंत भगवान का सूत्र जलाने की बात कही। पश्चताप में ऋषि अनंत सूत्र की प्राप्ति के लिए वन की ओर चल पड़े।  कई दिनों तक वन में घूमने के बाद जब उन्हें अनंत सूत्र नहीं मिला, तो वे बड़े निराश होकर जमीन पर बैठ गए। उस समय भगवान विष्णु प्रकट होकर ऋषि से बोले मेरा तिरस्कार ही तुम्हे पीड़ा दे रहा है। इसका पश्चपात ही तुम्हें इस पीड़ा से मुक्त कर सकता है।  इसके लिए तुम अनंत चतुर्दशी का व्रत 14 वर्षों तक करो और इससे तम्हारी पीड़ा दूर होगी। इस प्रकार अनंत चतुर्दशी की शुरुआत हुई और लोग इस व्रत को मनवांछित फल देने वाला व्रत मानते हैं।

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