इस वर्ष 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा (Vishwakarma Puja) सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार बाबा विश्वकर्मा पितरों की श्रेणी में आते हैं। सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश के साथ पितरों का पृथ्वीलोक में आगमन मान लिया जाता है। वे हमारी श्रद्धा भक्ति के प्रसन्न होकर धन, वंश एवं आजीविका वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। वास्तु, निर्माण या यांत्रिक गतिविधियों से जुड़े लोग अपने शिल्प एवं उद्योग के लिए विश्वकर्मा पूजा के दिन देवशिल्पी की पूजा करते हैं। इस दिन यंत्रों की सफाई और पूजा होती है और कल कारखाने बंद रहते हैं। पंडित विनोद पांडेय बताते हैं कि भगवान विश्वकर्मा ने ही भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका और लंकापुरी का निर्माण उन्होंने ही किया था। आचार्य ने बताया कि इस दिन सर्वार्थ सिद्धियोग भी बन रहा है।
विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त, राहुकाल होने के कारण 10 बजकर 30 मिनट से 12 बजे के बीच नहीं होगा पूजा
पंडित के अनुसार 17 सितंबर को सुबह छह बजकर 7 मिनट से 18 सितंबर सुबह तीन बजकर 36 मिनट तक योग रहेगा। 17 को राहुकाल प्रात: 10 बजकर 30 मिनट से 12 बजे के बीच होने से इस समय पूजा निषिद्ध है। बाकी किसी भी समय पूजा कर सकते हैं। भगवान विश्वकर्मा की पूजा में ओम आधार शक्तपे नम: और ओम कूमयि नम:’, ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै नम:’ मंत्र का जप करना चाहिए। रुद्राक्ष की माला से जप करना अच्छा रहता है।
विश्वकर्मा की पौराणिक कथा
पुराणों में जिक्र है कि इस पूरे ब्राह्मांड की रचना विश्वकर्मा द्वारा की गई थी। विश्वकर्मा जी के द्वारा धरती, आकाश और जल की रचना की गई है। विश्वकर्मा पुराण में बताया गया है कि नारायण जी ने पहले ब्रह्मा जी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की थी। विश्वकर्मा द्वारा ही अस्त्र और शस्त्रों का निर्माण किया गया था। भगवान विश्वकर्मा ने ही लंका का निर्माण किया था। कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती के लिए एक महल का निर्माण करने के बार में सोचा और इसकी जिम्मेदारी भगवान विश्वकर्मा को सौंपी। तब उन्होंने सोने का महल बना दिया। इस महल की पूजा के लिए रावण को बुलाया गया। लेकिन रावण महल को देखकर इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने दक्षिणा के रूप में महल को ही मांग लिया। भगवान शिव रावण को महल सौंप कर खुद कैलाश पर्वत चले गए। इसके अलावा विश्वकर्मा ने पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ नगर का निर्माण, कौरवों के लिए हस्तिनापुर और भगवान श्री कृष्ण के लिए द्वारका का निर्माण किया था।