Published on September 13, 2021 3:44 pm by MaiBihar Media
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संस्थापकों में से एक और मनरेगा (MGNREGA) मैन से प्रख्यात डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) की आज पहली पुण्यतिथि है। आज ही के दिन यानी 13 सितंबर 2020, की तारीख को उन्होंने दिल्ली स्थित एम्स में इलाज के दौरान दुनिया को अलविदा कह दिया था। उनके पहली बरसी पर राज्य में अलग-अलग जगहों पर कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इसी कड़ी में मुजफ्फरपुर स्थित बैरिया में सर्वदलीय श्रद्धांजलि सभा आयोजन किया गया है। जहां पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक दिग्गज जुटेंगे और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। आइये जानते है डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के जीवन से जुड़े कुछ पहलू को…
लालू-तेजस्वी ने दी श्रद्धांजलि
आज उनके पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया पर भी लोग श्रद्धांजलि दे रहे हैं। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव (Lalu Yadav) ने ट्वीट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी है और लिखा है, “संघर्षों के साथी हमारे प्रिय ब्रह्म बाबा रघुवंश बाबू को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।” वहीं, तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर लिखा है कि “अभिभावक, पार्टी के संस्थापक सदस्य, समता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित, गाँव, गरीब और किसान की नब्ज समझने वाले वरिष्ठ समाजवादी नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री ‘स्व० रघुवंश प्रसाद सिंह जी’ की उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि।”
आखिरी दिनों में बिखर गई दोस्ती
रघुवंश प्रसाद शुरू से ही समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे और सादगी और सिद्धांत उनकी सबसे बड़ी पहचान रही। आरजेडी में रहते देश के ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में कई बड़े काम किये। उन्हें मनरेगा क़ानून का असली शिल्पकार माना जाता है। राजनीतिक विश्लेषको का मानना है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में यूपीए को मनरेगा की मदद से ही जीत हासिल हुई थी और यही वजह है कि उन्हें लोग आज भी मनरेगा मैन के नाम से बुलाते हैं। रघुवंश बाबू के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए पर ना कभी उन्होंने अपना रास्ता बदला और ना ही खुलकर नाराजगी जताई। वे लालू प्रसाद यादव के सबसे करीबी नेताओं में से एक थे। हालांकि जीवन के अंतिम दिनों में इतने आहत हुए कि देखते-देखते लालू और रघुवंश बाबू की वर्षो की दोस्ती भी कोरोना काल में बिखर गई। रघुवंश प्रसाद ने लालू यादव को इस्तीफा भेज दिया लेकिन लालू ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया। लालू यादव ने उनके इस्तीफे के जवाब में तब कहा था कि वो कहीं नहीं जा रहे। बता दें कि इससे पहले रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी के उपाध्यक्ष पद से भी इस्तीफा दे दिया था।
मुख्यमंत्री नीतीश को कई पन्नों का लिखा था पत्र
बिहार और समूचे देश भर में रघुवंश प्रसाद सिंह की पहचान एक प्रखर समाजवादी नेता के तौर पर थी। बेदाग और बेबाक अंदाज वाले रघुवंश बाबू को शुरू से ही पढ़ने और लोगों के बीच में रहने का शौक रहा था। रघुवंश बाबू को लालू प्रसाद यादव का संकटमोचक कहा जाता था। वह बिहार में पिछड़ों की पार्टी का तमगा हासिल करने वाले आरजेडी का सबसे बड़ा सवर्ण चेहरा भी थे। वे लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थे। जीवन के आखिरी समय में इस दुनिया को अलविदा कहने से महज तीन दिन पहले 10 सितंबर को रघुवंश बाबू ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कई पन्नों का पत्र लिखा और उन्होंने अपनी आखिरी इच्छाएं व्यक्त की। जीवन के आखिरी पड़ाव पर रघुवंश बाबू का सबसे बड़ा सपना ये रहा कि बिहार की राजगद्दी पर बैठने वाला व्यक्ति वर्धमान महावीर की जन्मस्थली, गौतम बुद्ध की कर्मस्थली और लोकतंत्र की जननी वैशाली में गणतंत्र दिवस के दिन झंडोतोलन करे। इसके अलावे रघुवंश प्रसाद सिंह ने चार अन्य मांगे भी सरकार के समक्षा रखा था। जिसे हाल ही में एक बार फिर से तेजस्वी ने हवा दे दी। तेजस्वी यादव ने विगत दो दिन पहले एक ट्वीट कर बताया कि वे मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखे हैं, जिसमें रघुवंश जी के बरसी पर उनके द्वारा किए गए मांगों को पूरा करने को कहा है।
रघुवंश प्रसाद सिंह का जन्म छह जून 1946 को वैशाली के शाहपुर में हुआ था। उन्होंने बिहार यूनिवर्सिटी से गणित में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी। साल 1969 से 1974 के बीच करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित पढ़ाया। युवा अवस्था में ही वो लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में शामिल हो गए थे। गणित के प्रोफेसर के तौर पर डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने नौकरी भी की और इस बीच कई आंदोलनों में वह जेल भी गए। पहली बार 1970 में रघुवंश प्रसाद शिक्षकों के आंदोलन के दौरान जेल गए। उसके बाद जब वो कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आए तब साल 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर से जेल चले गए। इसके बाद तो उनके जेल आने जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया। इतना ही नहीं इमरजेंसी के दौरान जब बिहार में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी, तो बिहार सरकार ने जेल में बंद रघुवंश प्रसाद सिंह को प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया। नौकरी से हाथ धोने के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण के रास्ते पर तेजी से चल पड़े। इस दौरान वे मीसा के तहत मुजफ्फरपुर जेल में बंद कर दिए गए। जहां उनकी पहली मुलाकात लालू यादव से हुई थी। तब लालू प्रसाद यादव पटना यूनिवर्सिटी में स्टूडेंड लीडर थे और जेपी आंदोलन में काफी सक्रिय थे। यही से शुरू हुई रघुवंश-लालू की दोस्ती। जो 32 सालो बाद टूट के कगार पर पहुंच गई।
रघुवंश प्रसाद सिंह साल 1977 से 1979 तक वे बिहार सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष भी बनाया गया। फिर साल 1985 से 1990 के दौरान रघुवंश प्रसाद लोक लेखांकन समिति के अध्यक्ष भी रहे। लोकसभा के सदस्य के तौर पर उनका पहला कार्यकाल साल 1996 से शुरू हुआ। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में वो निर्वाचित हुए और उन्हें बिहार राज्य के लिए केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया। लोकसभा में दूसरी बार रघुवंश प्रसाद सिंह साल 1998 में निर्वाचित हुए और साल 1999 में तीसरी बार वो लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। साल 2004 में चौथी बार उन्हें लोकसभा सदस्य के रूप में चुना गया और 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पांचवी बार जीत दर्ज की। 1996 से 2009 तक लगातार रघुवंश प्रसाद सिंह ने वैशाली लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।