Published on August 11, 2021 6:26 pm by MaiBihar Media
जातीय जनगणना को लेकर बिहार में शुरू हुई राजनीति का असर अब उत्तर प्रदेश तक पहुंच चुकी है। उत्तर प्रदेश के बदायूं से बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्या ने केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की है। वहीं, आज राजद ने आरएसएस को निशाने पर लिया है तो राजद सुप्रीमो लालू यादव ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इधर तेजस्वी यादव भी पीछे नहीं है।
सबसे पहले बता दें कि भाजपा सांसद संघमित्रा मोर्या ने कहा है कि मुझे उत्तर प्रदेश को देखकर ऐसा लगता है कि पिछड़ा वर्ग अभी पिछड़ा हुआ है, कुछ एक-दो समाज को छोड़कर। अगर जातिगत जनगणना होती है तो उससे OBC को फायदा होने वाला है। वहीं, राजद सुप्रीमो लालू यादव ने जातीय जनगणना को लेकर कहा है कि अगर 2021 जनगणना में जातियों की गणना नहीं होगी तो बिहार के अलावा देश के सभी पिछड़े-अतिपिछड़ों के साथ दलित और अल्पसंख्यक भी गणना का बहिष्कार कर सकते है। जनगणना के जिन आँकड़ों से देश की बहुसंख्यक आबादी का भला नहीं होता हो तो फिर जानवरों की गणना वाले आँकड़ों का क्या हम अचार डालेंगे?
राजद ने ट्वीट कर आरएसएस को निशाने पर लिया है और लिखा है कि “मुट्ठीभर चितपावन ब्राह्मणों के जातिवादी संगठन की इतनी औक़ात भी नहीं कि देश के 85% SC/ST/OBC के आरक्षण को रोक दें। भागवत ने एक बार बोला था,क्या हश्र हुआ था,पता है ना? आरएसएस, तुम्हारी सारी चालाकियाँ समझते है। तुम सोचते हो सब बेच आरक्षण को बैकडोर से ख़त्म कर देंगे। नहीं होने देंगे”
इधर तेजस्वी यादव ने भी कहा है, पिछड़ा/अतिपिछड़ा विरोधी मोदी सरकार देश की पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों की गणना कराने से क्यों डर रही है? क्या इसलिए कि हज़ारों पिछड़ी जातियों की जनगणना से यह ज्ञात हो जाएगा कि कैसे चंद मुट्ठी भर लोग युगों से सत्ता प्रतिष्ठानों एवं देश के संस्थानों व संसाधनों पर कुंडली मार बैठे है?
हमारे देश में 90 वर्ष से कोई जातिगत जनगणना नहीं हुई है। कमजोर वर्गों के उत्थान और उन्नति संबंधित सब नीतियाँ और निर्णय पुराने आँकड़ों के अनुमानित आधार पर ही लिए जाते है। 90 वर्षों से कोई सही आँकड़ा सरकारों ने सामने नहीं आने दिया। जातिगत जनगणना सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम हैं। जातीय जनगणना से समाज के अंतिम पायदान पर खड़े सामाजिक समूहों को आगे आने का विश्वसनीय अवसर मिलेगा।
संसार के लगभग हर लोकतांत्रिक देश में एक समान विकास, सामाजिक आर्थिक न्याय, सभी वर्गों की एक समान उन्नति, समृद्धि, विविधता और उसकी वास्तविक सच्चाई जानने के लिए जनगणना होती है। सरकार हर धर्म के आँकड़े जुटाती है इसी प्रकार अगर सभी जातियों के भी विश्वसनीय आँकड़े जुट जाएँगे तो उसी आधार पर हर वर्ग और जाति के शैक्षणिक आर्थिक उत्थान, कार्य पालिका, विधायिका सहित अन्य क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व देने वाली न्यायपूर्ण नीतियां बनाई जा सकेंगी। उसी अनुसार बजट का भी आवंटन किया जा सकेगा।
जातीय जनगणना राष्ट्रीय जनता दल की बहुत पुरानी माँग रही है। हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय श्री लालू प्रसाद जी के अथक प्रयासों , पहल और दबाव के चलते 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लिया था। उस पर लगभग 5000 करोड़ खर्च भी किया गया लेकिन केंद्र की मोदी सरकार ने सभी आँकड़े छुपा लिए। जातीय जनगणना देश के विकास एव समाज के वंचित और उपेक्षित समूहों के उत्थान के लिए अति ज़रूरी है। जातीय जनगणना होने से सभी वर्गों का भला होगा।
अब तो सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि आरएसएस को आगे कर बिहार में जातीय जनगणना के नाम पर आरक्षण व पिछड़ो की राजनीति की परवान चढ़ने वाली है।